आदिकाल (650-1350 ई.) हिंदी साहित्य का आरंभिक काल है, जिसमें युद्धों का सजीव वर्णन, वीर रस की प्रधानता और कल्पना का अभाव मिलता है। यह काल चारण कवियों द्वारा रचित रासो काव्यों के लिए प्रसिद्ध है। इन काव्यों में आश्रयदाताओं की प्रशंसा, ऐतिहासिक घटनाओं का मिश्रण और डिंगल-पिंगल जैसी शैलियों का प्रयोग किया गया है। रासो काव्य के अलावा, सिद्ध और नाथ साहित्य में धार्मिक और दार्शनिक विषयों पर भी रचनाएँ हुईं, जिनमें हठयोग, साधना और नैतिकता का उपदेश दिया गया। इस काल में लोकभाषा का प्रयोग अधिक हुआ, जिससे साहित्य जनमानस के निकट रहा। आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ हैं: सामंती परिवेश का प्रभाव, ऐतिहासिकता और कल्पना का मिश्रण, युद्धों का यथार्थवादी चित्रण, और धार्मिक उपदेशों का समावेश। यह काल हिंदी साहित्य की नींव रखता है और आगामी साहित्य के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
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