कवि धनपाल कृत ‘भविसयत्तकहा’ (भविष्यदत्त कथा) अपभ्रंश साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना है।
रचनाकार: धनपाल (इन्हें मुञ्ज ने ‘नरस्वती’ की उपाधि दी थी)।
भाषा: अपभ्रंश।
विधा/स्वरूप: यह एक कथा काव्य या प्रबंध काव्य है, जो 22 संधियों में विभक्त है।
कथानक: यह एक लौकिक कथा है, जिसमें वणिक्पुत्र भविष्यदत्त के जीवन और संघर्षों का वर्णन है।
छंद: इसमें मुख्य रूप से कडवकबद्ध शैली (पद्धड़िया छंद) का प्रयोग हुआ है, जिसे चौपाई-दोहा पद्धति का आरंभिक रूप माना जाता है।
विशेष: जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन जेकोबी ने इसका संपादन किया था।
कर चरण वर कुसुम लेवि। जिणु सुमिरवि पुप्फांजलि खिवेवि॥
फासुय सुयंद रस परिमलाइं। अहिल सिरि असेसइं तरूहलाइं॥
थिउ दीसवंतु खणु इक्कु जाम। दिनमणि अत्थ वणहु ढुक्कुताम॥
हुअ संध तेय तंबिर सराय। रत्तं वरू णं पंगुरिवि आय॥
पहि पहिय थक्क विहडिय रहंग। णिय-णिय आवासहो गय विहंग॥
मउलिय रविंद वम्महु वितट्ट। उप पंत बाल मिहुणह मरट्टु॥
परिगलिय संझ तं णिएवि राइ। असइ व संकेयहो चुक्क णाइ॥
हुअ कसण सवत्ति अ मच्छरेण। सेरि पहयणाइं मसि खप्परेण॥
हुअ रयणि बहल कज्जल समील। जगु गिलिबि णाइं थिय विसम सील॥
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