हिंदी साहित्य का आधुनिक काल, जो 1850 ई. के बाद से शुरू हुआ, एक परिवर्तनकारी और बहुआयामी युग है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता गद्य साहित्य का विकास है, जिसमें नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध और आलोचना जैसी विधाओं ने अपनी जड़ें जमाईं। इस काल में साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति को जगाना था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर आज तक, यह युग कई चरणों से गुजरा है। द्विवेदी युग में भाषा का परिष्कार हुआ, तो छायावाद में व्यक्तिगत भावनाओं, कल्पना और रहस्यवाद को महत्व दिया गया। प्रगतिवाद ने सामाजिक यथार्थ और शोषित वर्ग की पीड़ा को उजागर किया, जबकि प्रयोगवाद और नई कविता ने शिल्प और अभिव्यक्ति में नए प्रयोग किए। इस काल की एक और महत्वपूर्ण विशेषता खड़ी बोली का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास है, जिसने साहित्य को जनमानस के और करीब ला दिया। यह काल साहित्य को एक नए और व्यापक फलक पर ले गया।
समस्त
भारतेन्दु युग
द्विवेदी युग
छायावाद
प्रगतिवाद
प्रयोगवाद
नई कविता
समकालीन काव्य