भक्तिकाल

हिंदी साहित्य में भक्तिकाल (1350-1650 ई.) एक महत्वपूर्ण काल है, जिसे स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता भक्ति भावना की प्रधानता है, जहाँ कवियों ने ईश्वर के प्रति अपनी असीम आस्था और प्रेम को व्यक्त किया। भक्ति के दो मुख्य धाराएँ थीं: निर्गुण भक्ति (निराकार ईश्वर की उपासना) और सगुण भक्ति (साकार ईश्वर की उपासना)।
इस काल की रचनाओं में लोक कल्याण की भावना, जातिवाद का विरोध, और समन्वय की भावना प्रमुखता से मिलती है। कवियों ने आम बोलचाल की भाषाओं, जैसे अवधी और ब्रजभाषा, का प्रयोग कर अपनी बात जन-जन तक पहुँचाई। गुरु महिमा, नाम स्मरण, और विनम्रता जैसे नैतिक मूल्यों पर भी बल दिया गया। कबीर, सूरदास, तुलसीदास और मीराबाई जैसे महान कवियों ने इस काल को समृद्ध बनाया।

  • संत काव्य
  • सूफ़ी काव्य
  • रामभक्ति काव्य
  • कृष्णभक्ति काव्य
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