रीतिकाल

हिंदी साहित्य में रीतिकाल (1650-1850 ई.) दरबारी संस्कृति और सौंदर्यबोध का काल है, जिसे मुख्य रूप से तीन धाराओं में विभाजित किया गया है: रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध, और रीतिमुक्त। इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता श्रृंगार रस की प्रधानता है, जहाँ कवियों ने नायिका भेद, नख-शिख वर्णन और प्रेम क्रीड़ाओं का बहुत ही कलात्मक और अलंकृत वर्णन किया।
कवि अपनी रचनाओं में संस्कृत काव्यशास्त्र के नियमों (जैसे- अलंकार, छंद, रस) का पालन करते थे, जिसके कारण भाषा में अलंकरण और चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ गई। इस काल का साहित्य राजाओं और सामंतों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से लिखा गया था। जहाँ एक ओर बिहारी जैसे कवि ने गागर में सागर भर दिया, वहीं घनानंद जैसे कवियों ने प्रेम की गहरी पीड़ा और स्वच्छंद अभिव्यक्ति को दर्शाया। यह काल कला, सौंदर्य और भाषा की सूक्ष्मता के लिए जाना जाता है।

  • रीतिसिद्ध कवि
  • रीतिबद्ध कवि
  • रीतिमुक्त कवि
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