भाषा-अपभ्रंश/प्राकृत मिश्रित हिंदी (अपभ्रंश का प्रभाव अधिक)
छंद–दोहा (इस कारण इसका नाम ‘दोहा’ है)
अर्थ-‘पाहुड़’ का अर्थ उपहार होता है, अतः ‘दोहों का उपहार’।
विषय-वस्तु–रहस्यवाद और आत्म-ज्ञान की प्रधानता।
दार्शनिक आधार-जैन धर्म का उपदेश।
विशेषता-इसमें वाह्य आडंबरों (मोती पूजा) का खंडन किया गया है और आत्मा की शुद्धि पर बल दिया गया है। यह जैन साहित्य की एक महत्वपूर्ण रहस्यवादी काव्यकृति है।
संक्षेप में: यह कृति जैन मुनि रामसिंह द्वारा रचित आत्म-ज्ञान और रहस्यवाद से युक्त आदिकालीन दोहा-काव्य है।
गरू दिणयरु गुरु हिमकणु गुरू दीवउ गुरु देउ।
अप्पापरहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ॥
अप्पायत्तउ जं जि सुहु तेण जि करि संतोसु।
परसुहु वढ चितंतहं हियइ ण फिट्टइ सोसु॥
तं सुह विसयपरंमुहउ णिय अप्पा झायंतु।
तं सुहु इंदु वि णउ लहइ देविंहि कोडि रमंतु॥
आभुंजंता विसयसुह जे ण वि हियइ धरंति।
ते सासयसुहु लहु लहहिं जिणवर एम भणंति॥
ण वि भुंजंता विसय सुह हियडइ भाउ धरंति।
सालिसित्थु जिम वप्पुडउ णर णस्यहं णिवडंति॥
ओयइं अडवह वडवडइ पर रंजिज्जइ लोउ।
मणसुद्धइं णिच्चलठियइं पाविज्जइ परलोउ॥
धंधइं पडियउ सयलु जगु कम्मइं करइ अयाणु।
मोक्खहं कारणु एक्क खणु ण वि चिंतइ अप्पाणु॥
जोणिहिं लक्खहिं परिभमइ अप्पा दुक्खु सहंतु।
पुतकलतइं मोहियउ जाम ण बोहि लहंतु॥
अण्णु म जाणहि अप्पणउ घरु परियणु तणु इट्ठु।
कम्मायतउ कारिमउ आगमि जोइहिं सिट्ठु॥
जं दुक्खु वि तं सुक्खु किउ नं सुहु तं पि य दुक्खु।
पइं जिय मोहहिं वसि गयइं तेण ण पायउ मुक्खु॥
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पाहुड़ दोहा
संबंधित विषय – रहस्यवाद