महाकवि स्वयंभू द्वारा 8वीं शताब्दी ईस्वी में अपभ्रंश भाषा में रचित ‘पउम चरिउ’ (पद्म चरित) भारतीय साहित्य का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण महाकाव्य है, जिसे अपभ्रंश साहित्य का ‘प्रथम महाकाव्य’ भी कहा जाता है। यह कृति रामकथा पर आधारित है, लेकिन इसे जैन धर्म के दार्शनिक आदर्शों के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है, इसीलिए इसे ‘जैन रामायण’ भी कहते हैं। इस रचना का नाम ‘पउम चरिउ’ इसलिए पड़ा क्योंकि जैन परंपरा में राम को ‘पद्म’ नाम से जाना जाता है। काव्य-शिल्प की दृष्टि से यह ग्रंथ अप्रतिम है, यह मुख्य रूप से पद्धड़िया छंद (जो आगे चलकर हिंदी के चौपाई छंद का आधार बना) में निबद्ध है। यह महाकाव्य पाँच काण्डों और 92 संधियों में विभक्त है, जिसे स्वयंभू की मृत्यु के बाद उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयंभू ने पूरा किया था। कथावस्तु में सबसे बड़ी मौलिक भिन्नता यह है कि इसमें रावण का वध राम नहीं, बल्कि उनके भाई लक्ष्मण करते हैं, और अंत में राम तथा सीता दोनों जैन मुनि बनकर मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त करते हैं। स्वयंभू को इसी महान रचना के कारण ‘अपभ्रंश का वाल्मीकि’ कहा जाता है, और इसका प्रभाव परवर्ती हिंदी कवियों, विशेषकर तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ पर भी देखा जाता है।
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