
पुष्पदंत अपभ्रंश के महाकवि थे।
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पुष्पदंत की सम्पूर्ण रचनाएँ
पुष्पदंत का जीवन और रचनात्मक परिचय
महाकवि पुष्पदंत अपभ्रंश भाषा के कवि थे, जिन्होंने लगभग 10वीं शताब्दी ईस्वी (972) ई. के आस-पास) में अपनी कृतियों से साहित्य को समृद्ध किया।
समय: 10वीं शताब्दी ईस्वी।
कुल/धर्म: इनका जन्म काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण कुल में हुआ था। ये प्रारंभिक जीवन में शिवभक्त थे, लेकिन बाद में एक जैन संन्यासी के प्रभाव से जैन धर्म में दीक्षित हो गए।
माता-पिता: पिता केशवभट्ट और माता मुग्धादेवी थीं।
आश्रयदाता: इन्हें राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज तृतीय के मंत्री भरत का संरक्षण प्राप्त था, जिनकी प्रेरणा से इन्होंने अपनी महान कृतियों की रचना की।
विद्वानों द्वारा प्रदत्त उपाधियाँ
डॉ भयाणी ने इन्हे अपभ्रंश का भवभूति कहा है,
स्वयं द्वारा प्रयुक्त उपाधियाँ
अपनी अद्भुत काव्य प्रतिभा के कारण उन्होंने स्वयं भी अपनी रचनाओं में कई गौरवपूर्ण उपाधियों का प्रयोग किया है:
अभिमान मेरु
काव्य रत्नाकर
कवि कुल तिलक
प्रमुख रचनाएँ
महापुराण (तिरसठी महापुरिस गुणालंकार):
यह इनकी सबसे विशाल और प्रसिद्ध कृति है, जिसे तिसट्ठि महापुरुष गुणालंकार (63 महापुरुषों का गुणां से अलंकृत चरित्र) भी कहा जाता है।
इसमें 63 जैन महापुरुषों (तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि) का जीवन-चरित्र विस्तार से वर्णित है और जैन साहित्य में इसका स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जसहरचरिउ (यशोधर चरित): यह राजा यशोधर के जीवन पर आधारित एक लोकप्रिय कथा काव्य है।
णायकुमारचरिउ (नागकुमार चरित): यह नागकुमार के जीवन को केंद्र में रखकर लिखा गया काव्य है।
पुष्पदंत का साहित्य यह दर्शाता है कि वे न केवल एक महान् कवि थे, बल्कि वे अपभ्रंश भाषा के व्याकरण और शब्द-भंडार पर भी गहरा अधिकार रखते थे।
शिवसिंह सेंगर ने इन्हें ‘भाखा की जड़’ कहा है
पुष्पदंत की कविताएं