जोइंदु (योगीन्द्र)

छठी शती
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छठी सती के कवि जोइंदु से दोहा छंद का आरंभ माना जाता है।

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जोइंदु (योगीन्द्र) की सम्पूर्ण रचनाएँ

परिचय

अपभ्रंश भाषा के प्रमुख कवि जोइंदु (जिन्हें योगीन्दु या योगीन्द्र देव के नाम से भी जाना जाता है) जैन काव्य-परंपरा के एक महान अध्यात्मवेत्ता आचार्य हैं। वे अपभ्रंश साहित्य की निर्गुण धारा के आरंभिक और महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने दोहा-काव्य की परंपरा को आगे बढ़ाया।


जीवन परिचय

जोइंदु के जीवन-वृत्त के संबंध में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है, क्योंकि उनके ग्रंथों में स्वयं के बारे में बहुत कम सामग्री उपलब्ध है। उनका नाम ‘जोइंदु’ अपभ्रंश रूप है, जबकि संस्कृत टीकाकारों ने उन्हें ‘योगीन्दु’ या ‘योगीन्द्र’ नाम से प्रसिद्ध किया। कुछ विद्वानों के अनुसार ‘जोइंदु’ नाम ‘योगिचन्द्र’ का संक्षिप्त रूप है।
समयकाल: विभिन्न शोधों और ग्रंथों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर, आचार्य जोइंदु का समय मुख्य रूप से ईसा की छठी शताब्दी के उत्तरार्ध (लगभग 550 ईस्वी) से सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध के बीच माना जाता है। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने अपनी ‘परमात्मप्रकाश’ की प्रस्तावना में इनका समय छठी शताब्दी माना है।
परंपरा: वे जैन परंपरा के आचार्य थे और अध्यात्म-दर्शन के महान ज्ञाता थे।
शिष्य: उनकी रचना ‘परमात्मप्रकाश’ में अपने शिष्य भट्टप्रभाकर का उल्लेख मिलता है, जिसे मोक्षमार्ग समझाने के उद्देश्य से यह ग्रंथ लिखा गया था।


रचनात्मक परिचय

आचार्य जोइंदु की गणना अपभ्रंश के उन कवियों में होती है जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की निर्गुण काव्यधारा और रहस्यवाद की नींव रखी। उनकी कविताएँ मुख्यतः अध्यात्म, वैराग्य, और आत्मज्ञान पर केंद्रित हैं।

प्रमुख रचनाएँ

जोइंदु की दो रचनाएँ निर्भ्रांत रूप से प्रामाणिक मानी जाती हैं, और दोनों ही अपभ्रंश भाषा में दोहों में रचित हैं:
परमात्मप्रकाश
यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है।
इसमें दो अधिकार (अध्याय) हैं—प्रथम अधिकार में 126 दोहे और द्वितीय में 219 दोहे।
इसकी रचना शिष्य भट्टप्रभाकर को मोक्षमार्ग समझाने के लिए की गई थी।
यह जैन दर्शन के गूढ़ शुद्धात्मतत्त्व और परमात्मा के स्वरूप का सशक्त वर्णन करती है।
उन्होंने बाह्य आडंबरों का खंडन कर आत्मज्ञान पर विशेष बल दिया है।
योगसार
यह अपभ्रंश में दोहा-काव्य का प्रारंभिक और महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
इसमें मुख्य रूप से योग और आत्मा के स्वरूप का वर्णन किया गया है।
ग्रंथ में आत्मा को संसार के भय से मुक्ति दिलाने और शुद्धात्म-संबोधन (शुद्ध आत्मा का ज्ञान) प्रदान करने का उद्देश्य निहित है।

जोइंदु (योगीन्द्र) की कविताएं

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Sabita
Sabita
4 days ago

Sundar💐

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